Please read my self writeen poem Please read my self writeen poem
मुस्कान इत्ती भी महँगी नहीं, कि उसे सहेज के रखें...! मुस्कान इत्ती भी महँगी नहीं, कि उसे सहेज के रखें...!
आज के इस दौर को शब्दों पर चरितार्थ करने की एक छोटी सी कोशिश की है। आज के इस दौर को शब्दों पर चरितार्थ करने की एक छोटी सी कोशिश की है।
समाज की बुराइयों से दूर एक बेहतर दुनिया का सपना देखती एक कविता समाज की बुराइयों से दूर एक बेहतर दुनिया का सपना देखती एक कविता
झूठे समाज के लोग...। झूठे समाज के लोग...।
ऐसा कैसे कर लेते हो ! ऐसा कैसे कर लेते हो !